
न्यायालय की अवमानना अधिनियम 1971, के अनुसार न्यायालय की अवमानना का अर्थ किसी न्यायालय की गरिमा तथा उसके अधिकारों के प्रति अनादर प्रकट करना है। न्यायालय की अवमानना संबंधी कानून बहुत व्यापक है। न्यायालय अवमानना कईं प्रकार से हो सकता है जैसे न्यायधीशों का अपमान करना, अदालत में विचाराधीन मामले पर निराधार एवं असत्य टिप्पणी करना, न्यायालय की कार्यवाही में बाधा डालना, न्यायालय द्वारा किए गए किसी फैसले की गलत निंदा करना, न्यायालय के अधिकारियों, पक्षकारों एवं गवाहों को रोकना या कोई ऐसा कार्य करना जिससे निष्पक्ष जांच में कोई बाधा उत्पन्न होती हो, न्यायालय की अवमानना कहलाती है।
मीडिया द्वारा न्यायालय से संबंधित कोई गलत समाचार प्रकाशित या प्रसारित करना भी न्यायालय की अवमानना की श्रेणी में आता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 50 में स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका बनाने के बारे में व्यवस्था की गई है। स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका ही नागरिकों के जीवन, स्वतंत्रा एवं ख्याति की रक्षा कर सकती है। अतः न्यायपालिका की आलोचना संतुलित, और युक्तिसंगत होनी चाहिए तथा सही, सत्य, निष्पक्ष एवं सही उद्देश्य से की जानी चाहिए। मीडिया को न्यायपालिका को से संबंधित कोई भी समाचार निष्पक्ष एवं संपूर्ण जांच करने के पश्चात ही करना चाहिए। किसी पत्रकार या संपादक की लापरवाही उसके लिए न्यायालय की अवमानना का कारण बन सकती है। प्रत्येक व्यक्ति को न्यायालय से न्याय पाने का अधिकार है। न्यायालयों द्वारा पारित आदेशों में जनविश्वास बना रहे तभी न्याय की गरिमा बनी रह सकती है।
न्यायालय की निष्पक्षता, स्वतंत्रता, विश्वसनियता, एवं गरिमा को बनाए रखने के लिए न्यायालय की अवमानना को दंडनीय अपराध बनाया गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 129 एवं 215 के अंतर्गत सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालायों को अवमानना करने पर दोषी को दंडित करने का अधिकार दिया गया है।
न्यायालय की अवमानना अधिनियम सन् 1952 में भारतीय संसद द्वारा बनाया गया था जिसमें संशोधन करके पुनः सन् 1971 में यह कानून बनाया गया जिसे 2 दिसंबर 1971 को लागू किया गया था। इस कानून में कुल 24 धाराओं का प्रावधान किया गया है।
न्यायालय की अवमानना के प्रकारः
न्यायालय की अवमानना दो प्रकार की होती है-
1. सिविल अवमानना
2. अपराधिक अवमानना
1. सिविल अवमाननाः- सिविल या दीवानी अवमानना से तात्पर्य किसी न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री, निर्देश, आदेश, रिट या अन्य आदेशों की जानबूझकर अवहेलना करना या न्यायालय के लिए किए गए किसी वचनबंध को जानबूझकर भंग करना है।
2. अपराधिक अवमाननाः- अपराधिक अवमानना से तात्पर्य ऐसे कथन प्रकाशलन या कार्य से है जो किसी व्यक्ति द्वारा बाले गए, लिखे गए शब्दों या संकेतों द्वारा या दृश्यों द्वारा न्यायालय के कार्य में बाधा पंहुचाए।
न्यायालय की अवमानना के लिए दंड प्रावधान
न्यायालय की अवमानना का दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को दंडित करने की व्यवस्था निम्न प्रकार से की गई है। दोषी व्यक्ति को दंड का निर्धारण न्यायालय अवमानना कानून 1971 की धारा 12 में निम्न प्रकार से किया गया है-
1. छह माह के साधारण कारावास की सजा
2. दो हजार रूपए तक का आर्थिक दंड
3. अथवा कारावास या जुर्माना दोनों एक साथ
यदि न्यायालय की अवमानना के लिए दोषी पाया गया व्यक्ति कोई कंपनी है, जिसने न्यायालय के किसी आदेश, निर्णय, वचन की अवहेलना की है तो कंपनी के निदेशक को अवमानना के लिए दंडित किया जा सकता है। किसी समाचार पत्र के मालिक, संपादक एवं पत्रकार को न्यायालय अवमानना करने का दोषी होने पर दंडित किया जा सकता है। न्यायालय की अवमानना होने पर दोषी व्यक्ति क्षमायाचना या दंड के विरूद्ध अपील या पुर्नविचार के लिए याचिका दायर कर सकता है।
मीडिया एवं न्यायालय की अवमानना
मीडियाकर्मी न्यायालय के किसी आदेश या निर्णयों में दी गई बातों को जन-जन तक प्रकाशित या प्रसारित करते हैं। मीडियाकर्मीयों को न्यायालयों की रिपोर्टिंग करते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। कोई भी व्यक्ति तब तक अपराधी नहीं माना जा सकता जब तक कि वह विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के द्वारा दोषी सिद्ध न हो जाए। मीडिया जनहित में सार्वजनिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार इत्यादि को उजागर करता है। इन स्थितियों में मीडिया कर्मी को अपनी वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखने के साथ-साथ न्यायालय की अवमानना से संबंधित कानूनों की पालना भी सुनिश्चित करनी पड़ती है।
न्यायालय की कार्यवाही की कवरेज के दौरान एक मीडिया कर्मी को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
1. बंद अदालती कार्यवाही को प्रकाशित या प्रसारित न करना।
2. न्यायालय के न्यायधीश पर अनुचित दोषारोपण न करना।
3. न्यायालय की गरिमा, निष्पक्षता या प्रतिष्ठता पर संदेह न करना।
4. न्यायालय में लंबित मामलों पर गलत टिप्पणी करने से बचना चाहिए।
5. विचाराधिन मामलों के गवाहों या पक्षों को प्रभावित करने से बचना चाहिए।
6. न्यायालय की कार्यवाही में हस्तक्षेप न करना।
7. न्यायालय की आज्ञा के बिना अदालती कार्यवाही या अभियुक्त का चित्र प्रकाशित नहीं करना चाहिए।
8. अदालती कार्यवाही के तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश नहीं करना चाहिए।
न्यायालय की अवमानना के निम्नलिखित अपवाद हैं अर्थात इन स्थितियों में न्यायालय की अवमानना का दोषी होने से बचा जा सकता है-
1. किसी सामग्री का निर्दोष प्रकाशन एवं वितरण करना अर्थात बिना किसी स्वार्थ के।
2. न्यायालय में कार्यवाही लंबित होने की जानकारी न होने की स्थिति में।
3. प्रकाशन के समय कार्यवाही लंबित न होना।
4. किसी न्यायिक प्रक्रिया की न्यायोचित आलोचना करना।
5. न्यायालय के आदेश के बारे में न पता होना।
6. आदेश की पालना करना असंभव होने की स्थिति में।
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